Hindi Shayari Hindi Kahani ये शाम
ये शाम भी बड़ी अजीब है। ढल जाती है।
ये दिन भी बड़ा अजीब है। गुजर जाता है।
ये घड़ी भी बड़ी अजीब है। चलती रहेती है।
ये सब चल ही रहे हैं। मंजिल को पाने ?
सब खेल है मंजिल के। ओर मंजिल के खेल।
ये खेल बड़ा अजीब है। शुरू 12 से ओर खत्म 12 से।
-चिराग वणकर
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