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खुश था। मुट्ठी में सारा जहाँ था।
करली थी जंग भितर मुद्दतों से।
आज वो जंग भी थम गई।
आज वो आज भी थम गई।
निकले थे मंजिल ढूंढ़ ने को।
आज खुद को ढूंढने चले है।
अफसाना है। जिस रास्तों से गांव छोड़ा था उसी रास्तो ने आज गांव तक छोड़ दिया।
-चिराग वणकर
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